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Saturday, October 15, 2022

।।ॐ गुरवे नमः।।🙏🏻🌹🙏🏻

हरि ओम जी🙏🏻😊
आज के (15/10/22) दिशा सत्संग के अमृतबिंदू-

🌹 हमे एकाग्रता का अभ्यास करना चाहिए। *आप जो भी चीज करते हो, उसमें एकाग्र हो जाए। पूरा मन उसमें लगाए तो चमत्कार होगा।*

🌹 *भगवान कृष्ण कहते हैं -विभक्त सेवी बनो-एकांत का चयन करना सीखो।* एकांत में जब एकाग्र हो जाए, तो भगवान ने जो अंदर दिया है वह प्रकट होगा। 

🌹 *अटैचमेंट और डिटैचमेंट का भी अभ्यास करें। मन को जोड़ना और ध्यान हटाना भी आ जाए।* इस अभ्यास की *शुरुआत स्वाद को जीतने से करें।* उपवास- व्रत स्वाद जीतने के लिए है। फिर *वाणी का संयम करें, मिताहारी बने।* 

🌹 *तुलसी का पौधा बहुत अद्भुत काम करता है-हमारे पूर्वजों ने इसीलिए घर के बाहर यह पौधा लगाने का विधान दिया।* भगवान को भोग लगाते भी तुलसीदल ऊपर रखा जाता है।

🌹 *तुलसी के पत्ते खून पतला करते हैं। 5 तरह की तुलसी का अर्क पानी में ले तो ज्यादा लाभ मिलता है*। घी और तेल को भी पचाने के लिए भोजन के आधे घंटे बाद गर्म पानी का सेवन करें। *कार्डियो एक्सरसाइज, योग और प्राणायाम जरूर करें।* 

🌹 *हम अपने कंफर्ट झोन से बाहर निकल ने के लिए हिम्मत करें। परिवर्तन के लिए, कष्ट सहने के लिए तैयार रहे तो आप दायरे से बाहर होंगे।*
 कभी-कभी प्रकृति अपने आप परिवर्तन कराती है- पुरानी नौकरी छुट्ती  है, परेशानी आती है। कुछ दिन बाद बड़ा काम मिलता है, पैसा, बड़ी खुशियां मिलती है -तो व्यक्ति शिकायत से बाहर निकलकर धन्यवाद करता है। तब एहसास होता है -पहलेवाली नौकरी छूटती नही तो जो अब मिला है वह नहीं मिलता। *हम परिवर्तन से डरते हैं।* 

🌹 *हमें लेफ्ट और राइट ब्रेन में संतुलन साधना चाहिए।* ज्यादा इमोशनल बने तो धोखा खाएंगे और ज्यादा तार्किक बने तो रिश्तो को संभाल नहीं पाओगे। दोनों में संतुलन जरूरी है। साधना में यही सिखाया जाता है। 

हरि ओम जी🙏🏻😊
आप का हर पल मंगलमय हो, सब सुखी निरोग रहे।
🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹

Friday, October 22, 2021

अपने बच्चों





अपने बच्चों को अमीर बनाने का प्रयास मत करो,उन्हें अमीर बनाने की विधी सिखा दो।

 

Do not try to make your kids rich; instead teach them the method to become rich.

Tuesday, October 19, 2021

Photo from Madan Gopal Garga

*आज गीता के अमृत ज्ञान में सतगुरु ने 💐अपने कर्तव्य और धर्म का पालन करो💐 यह बताया*।
🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩

💐भगवान श्री कृष्ण ने कहा ,हे अर्जुन ,तू मच्चित होकर मेरी कृपा से सब संकटो को पार कर जाएगा। मगर अहंकार के कारण यदि नहीं सुनेगा तो विनिष्ट हो जाएगा। *अंतरात्मा की आवाज को सुनता हुआ मनुष्य सही निर्णय लेता है* तब वह बड़ी भारी मुश्किलों से बाहर निकल जाता है। अन्यथा माया के प्रभाव में आ जाता है महात्मा बुद्ध के भी अपने शिष्यों ने यही सवाल किया था कि पानी में बहती हुई सभी लकड़ियां क्या समुद्र तक पहुंच जाएंगी।और समझाया कि कुछ रास्ते में अटक जाएंगी कुछ ही समुद्र तक पहुंचेंगी। जो रास्ते में रुक गई वह संसार की माया के कारण अपने लक्ष्य समुद्र तक नहीं जा पाती हैं।

💐अर्जुन के रगों में क्षत्रिय स्वभाव है और केवल एक जगह जाकर वह रुक गया है कि हमारे संबंधी हमारे बड़े मारे जाएंगे ।तो कृष्ण ने कहा कि यह धर्म की लड़ाई है निर्णय लिए जा चुके हैं यदि तुम नहीं  लड़ोगे,तो प्रकृति स्वयं तुम्हें नष्ट कर देगी। क्योंकि *आप प्रकृति के बस में हैं कीमती अक्ल नहीं है कीमती है आदत और स्वभाव*। व्यक्ति के व्यक्तित्व पर आदतें सवार रहती हैं इसलिए गुरु के निर्देशन में सभी कार्य करें।

💐हे अर्जुन तुम इस समय मोह वश मेरे निर्देश को मना कर रहे हो, लेकिन तुम अपने व्यक्तित्व और स्वभाव के द्वारा बाध्य होकर ही कर्म करोगे। ईश्वरीय आदेश को करके मनुष्य गौरव को प्राप्त होता है मनुष्य अपने पिछले स्वभाव के कारण वर्तमान में कार्य करता है इसलिए अपने स्वकर्म और स्वधर्म को पहचानना चाहिए *हम अपने को पूरी तरह परिवर्तित भी कर सकते हैं, जिसके लिए भगवान ने पूरी प्रक्रिया अब तक बताइ* और ऐसा परिवर्तन भी होता है कि लोगों को आश्चर्य होता है

💐 महर्षि बाल्मीकि उनकी पिछली भक्ति एक संजोग से जागृत हो गई, इसी तरह अगर हम भी तपस्या में संचित, क्रियमान कर्म को जलाकर अपने को शुद्ध कर लें, और हम अपने सूक्ष्म शरीर से छुटकारा पाकर के मुक्त होने की स्थिति तक पहुंच सके *जो आगे आने वाले कर्म आ रहे हैं वह आएंगे, लेकिन पिछले कर्मों को तो हम जला सकते हैं*

💐भगवान श्री कृष्ण ने कहा कि अब तो तुम्हें युद्ध करना ही पड़ेगा ।मनुष्य माया लोक के कारण नीचे की तरफ खींचता जाता है ऊपर जाने के लिए *गुरु के निर्देशन में अपने को हल्का करते हुए ऊपर उठना चाहिए* ,जैसे जल वाष्प बनकर उड़ता है ग्रेविटेशन के साथ लैविटेशन को भी ध्यान रखना चाहिए *भगवान के प्रतिनिधि गुरु, जिसकी आवाज ह्रदय में सुनाई दे रही है उस के निर्देशन में संसार में जीवन जीना चाहिए* ,अन्यथा प्रकृति अपने आप कार्य करा लेगी।
🕉️🕉️🕉️🕉️🕉️🕉️🕉️🕉️🕉️
दिनांक 19 अक्टूबर 2021
संकलनकर्ता रविंद्र नाथ द्विवेदी पुणे मंडल
क्रमशः💐💐💐💐💐💐💐💐 

Saturday, September 11, 2021

हरि बोल 🙏🏻
इस👇 कथा को पढो बहुत अच्छी है 

*सुखी रहने का तरीका*
*********************

      *एक बार की बात है संत तुकाराम अपने आश्रम में बैठे हुए थे। तभी उनका एक शिष्य, जो स्वाभाव से थोड़ा क्रोधी था उनके समक्ष आया और बोला-*

*गुरूजी, आप कैसे अपना व्यवहार इतना मधुर बनाये रहते हैं, ना आप किसी पे क्रोध करते हैं और ना ही किसी को कुछ भला-बुरा कहते हैं? कृपया अपने इस अच्छे व्यवहार का रहस्य बताइए?*

*संत बोले- मुझे अपने रहस्य के बारे में तो नहीं पता, पर मैं तुम्हारा रहस्य जानता हूँ !*

*"मेरा रहस्य! वह क्या है गुरु जी?" शिष्य ने आश्चर्य से पूछा।*

*"तुम अगले एक हफ्ते में मरने वाले हो!" संत तुकाराम दुखी होते हुए बोले।*

*कोई और कहता तो शिष्य ये बात मजाक में टाल सकता था, पर स्वयं संत तुकाराम के मुख से निकली बात को कोई कैसे काट सकता था?*

*शिष्य उदास हो गया और गुरु का आशीर्वाद ले वहां से चला गया।*

*उस समय से शिष्य का स्वभाव बिलकुल बदल सा गया। वह हर किसी से प्रेम से मिलता और कभी किसी पे क्रोध न करता, अपना ज्यादातर समय ध्यान और पूजा में लगाता। वह उनके पास भी जाता जिससे उसने कभी गलत व्यवहार किया था और उनसे माफ़ी मांगता। देखते-देखते संत की भविष्यवाणी को एक हफ्ते पूरे होने को आये।*

*शिष्य ने सोचा चलो एक आखिरी बार गुरु के दर्शन कर आशीर्वाद ले लेते हैं। वह उनके समक्ष पहुंचा और बोला-*

*गुरुजी, मेरा समय पूरा होने वाला है, कृपया मुझे आशीर्वाद दीजिये!"*

*"मेरा आशीर्वाद हमेशा तुम्हारे साथ है पुत्र। अच्छा, ये बताओ कि पिछले सात दिन कैसे बीते? क्या तुम पहले की तरह ही लोगों से नाराज हुए, उन्हें अपशब्द कहे?"*

*संत तुकाराम ने प्रश्न किया।*

*"नहीं-नहीं, बिलकुल नहीं। मेरे पास जीने के लिए सिर्फ सात दिन थे, मैं इसे बेकार की बातों में कैसे गँवा सकता था?*
*मैं तो सबसे प्रेम से मिला, और जिन लोगों का कभी दिल दुखाया था उनसे क्षमा भी मांगी" शिष्य तत्परता से बोला।*

*"संत तुकाराम मुस्कुराए और बोले, "बस यही तो मेरे अच्छे व्यवहार का रहस्य है।"*
*"मैं जानता हूँ कि मैं कभी भी मर सकता हूँ, इसलिए मैं हर किसी से प्रेमपूर्ण व्यवहार करता हूँ, और यही मेरे अच्छे व्यवहार का रहस्य है।*

*शिष्य समझ गया कि संत तुकाराम ने उसे जीवन का यह पाठ पढ़ाने के लिए ही मृत्यु का भय दिखाया था ।*

*वास्तव में हमारे पास भी सात दिन ही बचें हैं 😗

*रवि, सोम, मंगल, बुध, गुरु, शुक्र और शनि, आठवां दिन तो बना ही नहीं है ।*

🌹👏  *"आइये आज से परिवर्तन आरम्भ करें  और  हरे कृष्ण महामंत्र का जप करे*

🙏🏻सदैव जपिये...
जयश्री कृष्ण
*हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे*
*हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे*

                   🙏🏻खुश रहिये.....☺🙏🏻

Monday, August 30, 2021

Photo from MG Garga

*आज गीता के अमृत ज्ञान  में सतगुरु ने  💐आसुरी वृत्ति के लोग कैसे होते हैं💐 यह समझाया*।
🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩

💐भगवान श्री कृष्ण कहते हैं की, आसुरी वृत्ति के लोग यह मानते हैं कि इस जगत का कोई स्वामी नहीं है, यह काम से प्रेरित संसार, है जिसमें काम ही इस संसार का कारण है ।अन्य कुछ भी नहीं *विश्व को कोई मूल् सत्ता के अधीन नहीं मानते, यह धर्म और अधर्म को कुछ नहीं मानते इस जगत का निर्माण आकस्मिक हुआ है यह उनकी धारणा है* जबकि यह देखा गया है कि बिना व्यवस्था के कोई निर्माण नहीं हुआ है ।और व्यवस्था द्वारा आपको उचित लाभ भी मिलता है। आसुरी वृत्ति के लोग तर्क की बात करते हैं। जबकि ब्रह्मांड 8 चीजों से प्रमाणित है हमारे इतिहास में भी और विभिन्न मत पंतो में भी लोगों ने इसे बहुत ही अलंकारिक ढंग से समझाया। जबकि यह कोई भौगोलिक स्थिति नहीं है परमात्मा के निवास की ।उसे विज्ञान प्रमाणित नहीं करता ,वह अनुभव वाली बात है जबकि *विज्ञान भी यह कहता है कि हम जानकारी प्राप्त करते हुए ,जब अंतिम चरण में पहुंचते हैं तो यह महसूस होता है कि कोई शक्ति तो है*।

💐इस  मिथ्या ज्ञान को अवलंबन करके जिसकी बुद्धि नष्ट हो गई है ।वह क्रूर कर्म करते हुए ,इस संसार को नष्ट करने में ही रुचि रखते हैं और अपने को गौरवान्वित महसूस करते हैं ।यह नष्टआत्मा है जिनकी उच्चतर लोको में पहुंचने की संभावना नहीं रहती ।यह *अशुद्धियों से भरे शरीर को ही अपना जीवन मानते हैं  यह जगत के शत्रु होते हैं*

💐भगवान ने आगे कहा कि इन 6 आसुरी वृत्तियों से भरे लोग क्या क्या करते हैं ।यह 22 तरह के मद पैदा करते हैं हम इन से मुक्त हो। हमारे जीवन के दो छोर हैं एक है शुक्ल पक्ष और दूसरा कृष्ण पक्ष है। *दंभ ,मान से युक्त मोह बस, मिथ्या धारणाओं को रखकर, अशुद्ध संकल्पों के साथ जीवन में कार्य करते हैं। ऐसे लोग आसुरी वृत्ति वाले होते हैं* ।विडंबना यह है कि हम इंद्रियों द्वारा प्राप्त सुख को ही सुख मानते हैं जबकि हमें यह याद रखना चाहिए ,कि राजा ययाति 3 जीवन जिए। लेकिन अंत में यही कहा, कि यह शरीर 300 वर्षों तक जवान रहा, और पता चला कि जैसे आग में घी डालने से वह बुझती नहीं ,उसी तरह *भोगों को भोगने से तृप्ति नहीं मिलती। उल्टे मानसिक भोग की विकृति बढ़ती जाती है* वह पागल की स्थिति को प्राप्त होता है
भगवान की व्यवस्था है कि किसी चीज की मात्रा संतुलित हो तो ,आनंद आता है अन्यथा वह पीड़ा बन जाती है ऐसे अपवित्र संकल्प वाले लोग संसार में विचरण कर के संसार को गलत दिशा में ले जाते हैं ऐसे लोग खुद दुखी रहते हैं और दूसरों को भी दुखी करते हैं इतिहास में ऐसे राजा रानी की बहुत सारी कहानियां वर्णित हैं।
🕉️🕉️🕉️🕉️🕉️🕉️🕉️🕉️🕉️
दिनांक 30 अगस्त 2021
संकलनकर्ता रविंद्र नाथ द्विवेदी पुणे मंडल
क्रमशः🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏 

Friday, August 27, 2021

*🌸 सहजोबाई 🌸🙏🏻*

आज सहजो अपनी कुटिया के द्वार पर बैठी है, उसकी गुरुभक्ति से प्रसन्न होकर परमात्मा उसके सामने प्रकट हुए हैं । लेकिन सहजो के अन्दर कोई उत्साह नहीं है 

परमात्मा ने कहा - सहजो हम स्वयं चलकर आऐ हैं क्या तुम्हे हर्ष नही हो रहा ?

 सहजो ने कहा -- प्रभु ! ये तो आपने अहेतुक कृपा की है, पर मुझे तोआपके दर्शन की भी कामना नही थी।

परमात्मा को झटका लगा।
सहजो तेरे पास ऐसा क्या है ?,  
जो तू मेरा आतिथ्य भी नही करती है ! 

सहजो ने कहा-  मेरे पास मेरा सद्गुरु पूर्ण समर्थ है। भगवन ! मैने आपको अपने सद्गुरु मे पा लिया है, मैं परमात्म तत्व का दर्शन भी करना चाहती हूँ तो केवल अपने सद्गुरु के ही रूप मे। मुझे आपके दर्शनो की कोई अभिलाषा नही है

यदि मै गुरुदेव को कहती तो वह कभी का आपको उठाकर मेरी झोली मे डाल देते।

ये भाव देखकर आज परमात्मा पिघल गया। कहते है - सहजो मुझे अदंर आने के लिए नही कहोगी ?
 
सहजो कहती है- प्रभु मेरी कुटिया के भीतर एक ही आसन है और उस पर भी मेरे सद्गुरु विराजते हैं, क्या आप भूमि पर बैठकर मेरा आतिथ्य स्वीकार करेंगें ?

  भगवान् कहे तुम जहाँ कहोगी हम वहाँ बैठेंगें, भीतर तो आने दो।

भगवान् देखते हैं सचमुच एक ही आसन है, वे भूमि पर ही बैठ गए।

कहा -- सहजो !  मैं जहाँ जाता हूँ कुछ न कुछ देता हूँ ऐसा मेरा नियम है । कुछ माँग ही लो। सहजो कहती है -- प्रभु! मेरे जीवन मे कोई कामना नही है।  प्रभु ने कहा  फिर भी कुछ तो माँग लो । सहजो ने कहा प्रभु ! आप  मुझे क्या दोगे ? 

आप तो स्वयं एक दान हो, जिसे मेरा दाता सद्गुरु अपने अनन्य भक्त को जब चाहे दान कर देता है। अब बताओ प्रभु !  दान बड़ा या दाता ? 

आपने तो प्राणी को जन्म मरण, रोग भोग, सुख दुख मे उलझाया, ये तो मेरे सदगुरु दीनदयाल ने कृपा कर हर प्राणी को विधि बताकर, राह पकड़ा कर, शरण में आये हुए को सहारा देकर उसे निर्भय बनाकर उस द्वन्द से छुड़ाया।

प्रभु मुस्कराते हुए कहते हैं, सहजो ! आज मेरी मर्यादा रख ले, कुछ सेवा ही दे दे।
सहजो ने कहा - प्रभु एक सेवा है, मेरे सद्गुरु आने वाले हैं, जब मैं उन्हे भोजन कराऊँ तो क्या आप उनके पीछे खड़े होकर चमर डुला सकते हो ?

 कथा कहती है कि प्रभु ने सहजो के गुरु चरणदास पर चमर डुलाया। यही है सद्गुरु के प्रति सच्ची समर्पण! , साधक के अंदर अगर स्वर्ग तक की कामना जागृत हो जाय

उसे दृढ़ विश्वास होना चाहिए कि मुझे कहीं जाने की आवश्यकता नहीं है, यह तो मेरे सच्चे बादशाह यूं ही दे देंगे, लेकिन कब ? जब उसमे मेरा कल्याण होगा
🙏🏻🙏🏻

Wednesday, July 7, 2021

भूलना सीखो

भूलना सीखो दुनियाँ की बातों को, भूलना सीखो किसी का भला कर दिया उसको और भूलना सीखो किसी ने कुछ अपशब्द कह दिए उसको।

 

परम पूज्य सुधांशुजी महाराज

Monday, July 5, 2021

Bhajan

🌸 *पूज्यश्री के मधुर स्वरों में अमृतमय भजन - 41*🌸

*किसने दीप जलाया, दीप जलाकर किया उजाला*

*इस मधुर भजन को सुनने के पश्चात लाईक एवं सब्सक्राइब अवश्य कीजिए।*



Sunday, June 13, 2021

संग्रह के रोग को छोडकर

संग्रह के रोग को छोडकर भगवान की ओर जाने का प्रयास करें । उसकी कृपा मिल गई तो समझो सबकुछ मिल गया। यह हमेशा ध्यान रखें कि माल का संग्रह कर उसे सही-सलामत रखने में बहुत बड़ी चिंता होती है, जबकि माला फ़ेरकर प्रभु चिंतन करने में निश्चिंतता आती है। जहाँ निश्चिंतता है वही आनन्द और सुख-शांति है।

 

परम पूज्य सु्धांशुजी महाराज  

Friday, February 5, 2021

प्रार्थना

🌹 *प्रार्थना*🌹

          *हे प्रभु हमारा ह्रदय आपके श्री चरणों से जुडे रहें। हे जीवन के आधार। सुख स्वरूप सच्चिदानंद परमेशवर! समस्त संसार में आपने अपनी कृपाओं को बिखेरा हुआ है। हमारा क्षद्धा भरा प्रणाम आपके श्रीचरणों में स्वीकार हो।* 
        हे प्रभु। जब हम अपने अंतर्मन में शान्ति स्थापित करते हैं तब हमारे अन्तःस्थल में आपके आनन्द की तरंगें हिलोरें लेने लगती हैं और हमारा रोम-रोम आनन्द से पुलकित होने लगता है। जिससे हमारा व्यवहार रसपूर्ण और प्रेमपूर्ण हो जाता है। 
         हे प्रभु! हमारा ह्रदय आपसे जुडा रहे। हम पर आपकी कृपा बरसती रहे। हमारा मन आपके श्रीचरणों में लगा रहे, यह आशीर्वाद हमें अवश्य दो। 
      हम हर दिन नया उजाला, नई उमंगें, नया उल्लास लेकर जीवन के पथ पर अग्रसर हो सकें। ऐसी हमारे ऊपर कृपा कीजिए। 
       हे दयालु दाता। हमें ऐसा आशीर्वाद दीजिए कि हम प्रत्येक दिन को शुभ अवसर बना सकें। प्रत्येक दिन की चुनौती का सामना करने के लिए हमें ऐसी शक्ति प्रदान कीजिए कि जिससे हम संघर्ष में विजयी हों। 
        हमारे द्वारा संसार में कुछ भी बुरा न हो, प्रेमपूर्ण वातावरण में श्वास ले सकें तथा प्रेम को संपूर्ण संसार में बाँट सकें। 
     *हे प्रभु! हमें यह शुभाशीष दीजिए। यही आपसे हमारी विनती है, यही याचना है। इसे स्वीकार कीजिए।*

*ॐ शांतिः शांतिः शांतिः*🌹

Wednesday, January 27, 2021

Photo from MG Garga

🙏आज गीता के अमृत ज्ञान में सद्गुरु ने कल के प्रवचन का विस्तारीकरण करते हुए प्रकाशित दीप की चर्चा की।
🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩

💐भगवान श्री कृष्ण कहते हैं कि व्यक्ति के अंदर जन्म जन्मांतर का पडा हुआ अंधकार का पर्दा, मैं उसे अपने अनुग्रह से दूर कर देता हूं ।जब अज्ञान दूर होता है तो चीजें दिखाई देने लगती हैं महसूस होने लगती हैं और लोग कहते हैं कि संसार और रिश्ते अब समझ में आए ।इसके बाद संसार को देखने की दृष्टि बदल जाती है ।

💐जैसे कागज पर बना हुआ चित्र चमकता हुआ दिखाई देता है। लेकिन वह ज्योतिर्मय नहीं है ज्योतिरमय दीप परमात्मा का है ।वही हमारे अज्ञान के अंधकार को समाप्त करने में सक्षम है हमें जीवन में अपनी प्रतिकूलता याद रहती है प्रतिकूलता के साथ ही अनुकूल  दोनों में भी समय का याद नहीं आता  हैं इसे सापेक्षता का नियम भी कहते हैं

💐 इसी कारण लोगों को उनके दुखद अनुभव हमेशा याद रहते हैं। इसलिए भारत में बहुत ही अद्भुत परंपरा है कि धान की खेती के समय गीत गाते  हुए लोग भक्ति के गीत को गाकर उस कार्य को उत्साह पूर्वक करते हैं ।और कार्य की समाप्ति पर, सामूहिक भोजन करते हैं। इस तरह की व्यवस्था अलग-अलग प्रदेशों में अलग-अलग रूप में दिखाई देती है ।

💐यह सभी चीजें सद्गुरु ने 1 वर्ष के भारत भ्रमण में अनुभव किया। क्योंकि उनके सद्गुरु ने कहा था कि जो लोग जीवन जी रहे हैं यह शास्त्र उनकी क्या मदद कर सकता है ?? इस पर हमें कार्य करना चाहिए। ऐसा कोई आदर्श नहीं प्रस्तुत करना ।जिस को पूरा करने में ज्यादा समय लग जाए ।और सरल भाषा में बोलना ।सतगुरु ने महसूस किया कि जहां जहां ज्यादा अमीरी नहीं है वहां के लोग खुशहाल बहुत हैं।

💐 भगवान की कृपा होती है तो मनुष्य के संशय दूर होते हैं इसलिए भगवान कहते है कि मैं  अपने प्रकाशित दीप द्वारा  ऐसे लोगों का अंधकार दूर करता हूं।
🕉🕉🕉🕉🕉🕉🕉🕉🕉
ऊपर कहे गए शब्दों का सार नीचे इन चार लाइनों में।

💐होकर द्रवित उस शुद्ध, श्रद्धा से अनुग्रह के लिए।

💐अंतः करण में बैठ ,उनकी योगबल धारण किए।

💐अज्ञान से उत्पन्न सारे, अंधकारो को सदा।

💐 हू ज्ञान दीपक से धनंजय, नष्ट करता सर्वदा।

क्रमशः 27 जनवरी 2021
संकलनकर्ता रविंद्र नाथ द्विवेदी पुणे मंडल🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏 

Sunday, October 4, 2020

प्रेम वाला


प्रेम वाला इंसान ही दुनिया में निर्माण कर सकता है।


परम पूज्य सुधांशुजी महाराज  

Thursday, August 27, 2020

Photo from Madan Gopal Garga

🙏आज गीता के अमृत ज्ञान में सदगुरु ने 💐ध्यान के लिए स्थान और आसन का चयन पर अपने विचार व्यक्त किए।

💐भगवान श्री कृष्ण कहते हैं। कि ध्यान के लिए आसन के रूप में, सबसे पहले जमीन पर  ,लकड़ी का पाटा ,जो ना तो ज्यादा ऊंचा हो ,और ना तो जमीन के बिल्कुल समीप हो । उसके ऊपर कुश, मृगचर्म, और वस्त्र रखें। इसके साथ ही स्थान पवित्र का चयन करें। मतलब पंचमहाभूत जहां मदद कर सकें। ऐसे रमणीय प्राकृतिक स्थान का चयन करना चाहिए। भगवान श्रीकृष्ण ने स्वयं हिमालय के बद्रीनाथ नामक स्थान में त प   किया ।
💐हमें जीवन में अंत: परीक्षण अवश्य करना चाहिए। मनुष्य को स्वयं चार्ज करना चाहिए। यह तभी होता है जब आप शांत होकर शयन करते हैं ।तो आप ब्रह्मांड की ऊर्जा से अपने को चार्ज करते हैं जिससे प्रातः काल में हम ताजगी अनुभव करते है। इसमें नींद का प्रमुख योगदान है
💐मनुष्य को ब्रह्मांड की  ऊर्जा 10% तक मिलती है। सोने के समय करीब 5 घंटे तक आप गहरी नींद में सोते हैं उसके बाद स्वप्न अवस्था होती है। और करीब ऐसी स्थिति में आप 42 बार शरीर को हिलाते ,तथा वापस पुनः नींद में जाना चाहते हैं इन सब के लिए आपको सम  वातावरण वाले स्थान में सोना चाहिए। साधना के लिए गुरु नानक देव जी हिमालय के हेमकुंड साहिब में  गए।सद्गुरु ने  भी अपनी बद्रीनाथ यात्रा का  वर्णन किया।

💐जीवन में जब आप ऊपर उठना चाहते हैं ।तो आपकी जड़े भी उतनी ही नीचे गहरी होनी चाहिए। परमात्मा तब आपको चुनता है अपने कार्य को करने के लिए।  उस समय पूरी प्रकृति आपको सहयोग देते हुए आप से बड़ा कार्य कराना चाहती है। इसका सबसे बड़ा उदाहरण ,भगवान श्रीराम का समुद्र पर सेतु बनाना  है इसी तरह आप अपनी प्रतिभा से 1000 गुना बड़ा कार्य कर लेते हैं क्योंकि वह कार्य परमात्मा द्वारा किया जाता  है।
💐आप शांत अवस्था में उचित स्थान पर बैठकर परमात्मा से जब जुड़ते हैं। तो वह स्थान भी पूजनीय हो जाता है। क्योंकि वहां परमात्मा का प्रकाश उतरा हुआ रहता है।  आप जिस आसन पर बैठे हो, वह आसन कुचालक होना चाहिए। तथा अपनी ध्यान मुद्रा में जब आप स्थिर होते हैं तो ऊर्जा ,विद्युत धारा के रूप में आपके अंदर प्रवाहित होने लगती है।

💐आपका आसन सिंथेटिक नहीं होना चाहिए ।वह उन, सूती, रेशमी होना चाहिए होना चाहिए। जिससे आप में एलर्जी ना पैदा हो सके ।ध्यान  की क्रिया में आने वाली वस्तु मैं स्थान, आसन, और जल का पात्र भी होना चाहिए। ध्यान से वापस आने पर आसन को उठाकर जलबूंद डालते हुए तीन बार भूमि को स्पर्श करना चाहिए। और शक्राय नमः, ओम इंद्राय नमः, ॐ शत क्रत्वे नमः  कहते हुए फिर दोनों हाथ जोड़ सिर झुका कर प्रणाम करें।

💐 ऐसी स्थिति में जो अतिरिक्त ऊर्जा आप में है वह जमीन में चली जाएगी। ध्यान में जाने वाले व्यक्ति को अचानक आसन से उठना नहीं चाहिए ,अन्यथा आप अपने को अशांत महसूस करेंगे। अंत में दोनों हाथों का घर्षण करते हुए  सिर, कंठ, कंधा ,छाती पर रखते हुए नीचे की तरफ जाना चाहिए। और यह भावना रखें कि आंखों में शांति, वाणी में संयम, कंधों में कर्म करने की क्षमता, तथा सहृदय होते हुए जीवन जीने का आशीर्वाद प्राप्त करना चाहिए।

💐ऊपर कहे गए शब्दों का सार नीचे इन चार लाइनों में।
💐वह योग अभ्यासी पुरुष, अति शुद्ध सम थल पर सदा।
💐ऊंचा ना हो नीचा अधिक, आसन लगा थि र सर्वदा।
💐तब दर्भ पहिले पुनः मृग, छाला बिछा उस स्थान पर।
💐उस पर बिछ।वे  फिर धनंजय शुद्ध बस्त्र पुनीत कर।
🕉🕉🕉🕉🕉🕉🕉
क्रमशः 27 अगस्त 2020
संकलनकर्ता रविंद्र नाथ द्विवेदी पुणे मंडल🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏 

Tuesday, August 25, 2020

प्रेम वाला

प्रेम वाला इंसान ही दुनिया में निर्माण कर सकता है।

परम पूज्य सुधांशुजी महाराज  

Wednesday, August 19, 2020

आप कुछ नियम




परम पूज्य सुधांशुजी महारा


आप कुछ नियम बनाएँ। उन नियमों में एक नियम यह भी कि किसी को फ़ूल न दे सकें  मुस्कान तो हम जरूर देगें। किसी से बात करें तो बात की शुरुआत में मुस्कान पहले होनी चाहिए। हर बच्चे की सजावट उसकी मुस्कराहट है और इस दुनियाँ में हर फ़ूल की सजावट उसकी मुस्कराहट है। आपकी भी सजावट आपकी मुस्कराहट है तो अपनी मुस्कराहट को सजाइए। मुस्कराहट को लेकर घर से निकलिए, मुस्कराहट को लेकर घर में प्रवेश कीजिए। और देवताओं की आराधना करें तो मुस्करा कर करें और अपने गुरू को प्रणाम करें तो मुस्कान के साथ करें। अपने कर्मक्षेत्र में प्रवेश करें तो मुस्कराहट के साथ करें और जब अपने अन्न को देखें तो अन्न को भी मुस्कराकर देखिए। अपने घर भी जैसे पहली द्दर्ष्टि प्रवेश करते हुए डालते है तो मुस्कराहट की द्दर्ष्टि डालिए तो आप समझेंगे कि मनहूसियत निकलेगी और देवताओं की कृपा आपके घर में प्रवेश करेगी। 

Tuesday, June 16, 2020

Photo from Madan Gopal Garga

*गुरु के माध्यम से ही हम तक शास्त्रों, वेदों का सार पहुंचता है : अपनी सरल, मधुर वाणी द्वारा वह हमें ज्ञान प्रदान करते हैं जो सुपाच्य होकर हमारे अंदर उतर सके ! ॐ श्रीगुरुवे नमः !हरि ॐ !*💐🙏🕉️🙏 
🙏🚩ॐ श्री गुरवे नमः🚩🙏
     अभी आप एक तरफ  (जगत्)  से ही जुड़े हैं, आपको परमात्मा का कुछ पता ही नहीं है। अनादि काल से आप देह मानकर जीते हैं, देह से जुड़े हैं , सो जाते हैं फिर जागकर देह से ही जुड़ जाते हैं। आप स्वप्न भी देह का ही देखते हैं, साक्षी या ब्रह्म का स्वप्न भी नहीं देखते। आप जागृत में भी कभी नहीं सोचते। आपको साक्षी होना है। साक्षी को साक्षी नहीं होना। साक्षी तो पहले से रहा है , परमात्मा तो पहले से रहा है । क्या जिस दिन आप ढूढ़ेंगे, तब परमात्मा होगा ? जिस दिन आप मिलेंगे, उस दिन परमात्मा होगा? क्या उसके पहले नहीं था ?
    यदि घड़ा मिट्टी को न जाने तो क्या मिट्टी नहीं है ? अब प्रश्न यह है कि घड़ा क्यों जाने ? घड़ा मर रहा है , तो जाने। मिट्टी न मर रही है , न उसे कोई मतलब है। जो भूला है, वह याद करे । जो अज्ञानी है , वह ज्ञान प्राप्त करे । जो दुःखी है , वह खोजे । भगवान क्यों खोजे ? भगवान को क्या अटकी पड़ी है ? देह क्यों रोए? पेड़ नहीं रोता, दीवार नहीं रोती, मकान नहीं रोता। क्या आपका देह रोता है आपके लिए ? कौन रोता है धन के लिए ? जो धन के लिए रोता है, उसका रोना मिट जाए, इसके लिए परम धन से मिलना होगा।
     प्रयत्न न परमात्मा में है, न संसार में। न संसार को कुछ करना है ,न परमात्मा को कुछ करना है। जो कुछ करना है , (जीव को) आपको करना है। थोड़ा - सा काम आपका है ,आप करें और थोड़ा - सा काम गुरु करवाते हैं । परमात्मा कुछ नहीं करने वाले।
    अब आप कुछ करें या ऐसे ही बने रहें। अरे ! आप इस शरीर  को कहें कि कुछ करे। यदि नहीं तो जड़- जगत् उपदेश का पात्र नहीं। न ब्रह्म को साधना करनी है और न शरीर को साधना करनी है ।यदि शरीर में रहने वाला जीव चाहे तो साधना करे ।
*जीव और ब्रह्म का नित्य संबंध:-*
🙏🚩ॐ श्री गुरवे नमः🚩🙏
*( गुरुवाणी पुस्तक-देहोऽहम् से चैतन्योऽहम् तक यात्रा* भाग 6

Thursday, March 12, 2020

आप क्या बोलते हैं, बच्चा वो नहीं सीखता। आप क्या करते हैं और क्या घर का माहौल है, बच्चा वह सीखता है।


परम पूज्य सुधांशुजी महाराज

Friday, March 6, 2020

*🚩ॐ गुरूवे: नमः!🚩*
🌹 *आत्मप्रार्थना!*🌹
*🚩ॐ द्रां द्रीं द्रों स शुक्राय: नमः!🚩*
*🕉ॐ जय लक्ष्मी-नारायण सहित सद्गुरुदेवाय: चरण कमलेभ्यो: नमः!🕉*
         *हे लक्ष्मी-पति!हे नारायण!हे सच्चिदानंदस्वरूप प्यारे प्रभु!हम सभी आपके श्रीचरणों में कोटिश: नमन करते है!हे दयाओं के अनन्त सागर!आप पल-प्रतिपल हम सब प्राणियों पर कृपा-वृष्टि कर रहे है!आप प्रेमपूर्ण होकर ही सृष्टि का निर्माण करते है और सृष्टि का संहार भी आपके प्रेमपूर्ण हाथो से ही होता है!*
         *प्राणिमात्र के प्रति प्रेम से ओत-प्रोत होकर आप सृष्टि के नियमों की रचना करते है!जो प्राणी आपके नियमों के अनुकूल आचरण करता है उसकी झोली सुख और आनन्द से सदा भरी रहती है!*
    *हे जगदीश्वर!हम आपके कल्याणमय तेज स्वरुप का ध्यान धरते है और याचना करते है कि हमें ऐसी मानसिक सामर्थ्य प्रदान करें कि हम हमेशा आपके ही नियमों पर चलते रहें!आलस्य व् प्रमाद हम पर कभी हावी न हो!*
       *हे मेरे प्यारे प्रभु!हमें दुःखो से,कष्टों से मुक्त करें किन्तु अपने प्रेम बंधन से कभी अलग न होने दे!अब वैराग्य जागृत कर दीजिये!हमें ऐसा ज्ञान और विवेक प्राप्त हो जिससे हम अपने कर्तव्यों को तो निभायें लेकिन मोह-ममता हमारे मन में जागृत न हो!*
      *हे नारायण!अपनों के प्यार में पड़कर हम कोई गुनाह न करें!भले ही अपने संबंधियों को ज्यादा धन-सम्पदा सुख-सुविधाएँ न दे सके,पर अच्छे संस्कार और मर्यादा जरूर देकर जायें!*
   *हे भगवन!ये दुनिया हमसे छूट जाये पर आपका धाम हमें प्राप्त हो जाये!यही हमारी आपके श्रीचरणों में प्रार्थना है,इसे स्वीकार करें!हे नारायण!आपके सभी बच्चें सदा सुखी,स्वस्थ,दीर्घायु,सम्पन्न,सफल व खुशहाल रहें!सभी का हर दिन शुभ,मंगलमय,सुखमय,भक्तिमय व कल्याणकारी हो!सादर हरि ॐ जी!जय गुरुदेव!जय श्रीराम!🚩🌹🕉🙏🏻*

Sunday, March 1, 2020

अपने सर्वश्रेष्ठ

अपने सर्वश्रेष्ठ सनय को जानें और उसका उपयोग करें ।

परम पूज्य सुधांशुजी महाराज 

Saturday, February 29, 2020

Respect

परम पूज्य सुधांशुजी महाराज 

 Respect yourself and the world will respect you.

Monday, January 6, 2020

सरों की अच्छाई

दूसरों की अच्छाई तो देखो पर बुराई न देखो, वरना दुनियाँ हमारे लिए बुरी ही होगी।
 

परम पूज्य सुधांशुजी महाराज

Friday, January 3, 2020

जीवन संगीत है।




परम पूज्य सुधांशुजी महारा


जीवन संगीत है। सुर से बजाओगे तो बहुत अच्छा है, मधुर है और अगर सुर से भूल गए तो शोर है जीवनऔर उसको खुद भी नहीं सुन पाओगे दूसरे तो क्या सुनेगें ।

जीवन है चुनौती । नित नई नई चुनौती बनकर सामने आती हैं । जब आप बहादुर होकर चुनौती को स्वीकार करते हैं

तो वो कुछ न कुछ देकर ही जाएँगी, कुछ लाभ देंगी ।

Wednesday, October 16, 2019

🙏बहुत ही सुंदर कथा🙏

एक ब्राह्मण यात्रा करते-करते किसी नगर से गुजरा बड़े-बड़े महल एवं अट्टालिकाओं को देखकर ब्राह्मण भिक्षा माँगने गया किन्तु किसी ने भी उसे दो मुट्ठी अऩ्न नहीं दिया आखिर दोपहर हो गयी ब्राह्मण दुःखी होकर अपने भाग्य को कोसता हुआ जा रहा थाः "कैसा मेरा दुर्भाग्य है  इतने बड़े नगर में मुझे खाने के लिए दो मुट्ठी अन्न तक न मिला ? रोटी बना कर खाने के लिए दो मुट्ठी आटा तक न मिला ?

इतने में एक सिद्ध संत की निगाह उस पर पड़ी उन्होंने ब्राह्मण की बड़बड़ाहट सुन ली वे बड़े पहुँचे हुए संत थे उन्होंने कहाः

"ब्राह्मण  तुम मनुष्य से भिक्षा माँगो, पशु क्या जानें भिक्षा देना ?"

ब्राह्मण दंग रह गया और कहने लगाः "हे महात्मन्  आप क्या कह रहे हैं ? बड़ी-बड़ी अट्टालिकाओं में रहने वाले मनुष्यों से ही मैंने भिक्षा माँगी है"

संतः "नहीं ब्राह्मण मनुष्य शरीर में दिखने वाले वे लोग भीतर से मनुष्य नहीं हैं अभी भी वे पिछले जन्म के हिसाब ही जी रहे हैं कोई शेर की योनी से आया है तो कोई कुत्ते   की योनी से आया है, कोई हिरण की से आया है तो कोई गाय या भैंस की योनी से आया है उन की आकृति मानव-शरीर की जरूर है किन्तु अभी तक उन में मनुष्यत्व निखरा नहीं है और जब तक मनुष्यत्व नहीं निखरता, तब तक दूसरे मनुष्य की पीड़ा का पता नहीं चलता. 'दूसरे में भी मेरा ही दिलबर ही है' यह ज्ञान नहीं होता तुम ने मनुष्यों से नहीं, पशुओं से भिक्षा माँगी है"

ब्राह्मण का चेहरा  दुःख रहा था ब्राह्मण का चेहरा इन्कार की खबरें दे रहा था सिद्धपुरुष तो दूरदृष्टि के धनी होते हैं उन्होंने कहाः "देख ब्राह्मण मैं तुझे यह चश्मा देता हूँ इस चश्मे को पहन कर जा और कोई भी मनुष्य दिखे, उस से भिक्षा माँग फिर देख, क्या होता है"

ब्राह्मण जहाँ पहले गया था, वहीं पुनः गया योगसिद्ध कला वाला चश्मा पहनकर गौर से देखाः 'ओहोऽऽऽऽ…. वाकई कोई कुत्ता है कोई बिल्ली है.  तो कोई बघेरा है आकृति तो मनुष्य की है लेकिन संस्कार पशुओं के हैं मनुष्य होने पर भी मनुष्यत्व के संस्कार नहीं हैं' घूमते-घूमते वह ब्राह्मण थोड़ा सा आगे गया तो देखा कि एक मोची जूते सिल रहा है ब्राह्मण ने उसे गौर से देखा तो उस में मनुष्यत्व का निखार पाया

ब्राह्मण ने उस के पास जाकर कहाः "भाई तेरा धंधा तो बहुत हल्का है औऱ मैं हूँ ब्राह्मण रीति रिवाज एवं कर्मकाण्ड को बड़ी चुस्ती से पालता हूँ मुझे बड़ी भूख लगी है लेकिन तेरे हाथ का नहीं खाऊँगा फिर भी मैं तुझसे माँगता हूँ क्योंकि मुझे तुझमें मनुष्यत्व दिखा है"

उस मोची की आँखों से टप-टप आँसू बरसने लगे वह बोलाः "हे प्रभु  आप भूखे हैं ? हे मेरे रब  आप भूखे हैं ? इतनी देर आप कहाँ थे ?"

यह कहकर मोची उठा एवं जूते सिलकर टका, आना-दो आना वगैरह जो इकट्ठे किये थे, उस चिल्लर ( रेज़गारी ) को लेकर हलवाई की दुकान पर पहुँचा और बोलाः "हे हलवाई  मेरे इन भूखे भगवान की सेवा कर लो ये चिल्लर यहाँ रखता हूँ जो कुछ भी सब्जी-पराँठे-पूरी आदि दे सकते हो, वह इन्हें दे दो मैं अभी जाता हूँ"

यह कहकर मोची भागा घर जाकर अपने हाथ से बनाई हुई एक जोड़ी जूती ले आया एवं चौराहे पर उसे बेचने के लिए खड़ा हो गया

उस राज्य का राजा जूतियों का बड़ा शौकीन था उस दिन भी उस ने कई तरह की जूतियाँ पहनीं किंतु किसी की बनावट उसे पसंद नहीं आयी तो किसी का नाप नहीं आया दो-पाँच बार प्रयत्न करने पर भी राजा को कोई पसंद नहीं आयी तो मंत्री से क्रुद्ध होकर बोलाः "अगर इस बार ढंग की जूती लाया तो जूती वाले को इनाम दूँगा और ठीक नहीं लाया तो मंत्री के बच्चे तेरी खबर ले लूँगा"

दैव योग से मंत्री की नज़र इस मोची के रूप में खड़े असली मानव पर पड़ गयी जिस में मानवता खिली थी, जिस की आँखों में कुछ प्रेम के भाव थे, चित्त में दया-करूणा थी,  ब्राह्मण के संग का थोड़ा रंग लगा था मंत्री ने मोची से जूती ले ली एवं राजा के पास ले गया राजा को वह जूती एकदम 'फिट' आ गयी, मानो वह जूती राजा के नाप की ही बनी थी राजा ने कहाः "ऐसी जूती तो मैंने पहली बार ही पहन रहा हूँ किस मोची ने बनाई है यह जूती ?"

मंत्री बोला  "हुजूर  यह मोची बाहर ही खड़ा है"

मोची को बुलाया गया उस को देखकर राजा की भी मानवता थोड़ी खिली राजा ने कहाः "जूती के तो पाँच रूपये होते हैं किन्तु यह पाँच रूपयों वाली नहीं, पाँच सौ रूपयों वाली जूती है जूती बनाने वाले को पाँच सौ और जूती के पाँच सौ, कुल एक हजार रूपये इसको दे दो"

मोची बोलाः "राजा साहिब तनिक ठहरिये यह जूती मेरी नहीं है, जिसकी है उसे मैं अभी ले आता हूँ"

मोची जाकर विनयपूर्वक ब्राह्मण को राजा के पास ले आया एवं राजा से बोलाः "राजा साहब  यह जूती इन्हीं की है"

राजा को आश्चर्य हुआ वह बोलाः "यह तो ब्राह्मण है इस की जूती कैसे ?"

राजा ने ब्राह्मण से पूछा तो ब्राह्मण ने कहा मैं तो ब्राह्मण हूँ यात्रा करने निकला हूँ"

राजाः "मोची जूती तो तुम बेच रहे थे इस ब्राह्मण ने जूती कब खरीदी और बेची ?"

मोची ने कहाः "राजन्  मैंने मन में ही संकल्प कर लिया था कि जूती की जो रकम आयेगी वह इन ब्राह्मणदेव की होगी जब रकम इन की है तो मैं इन रूपयों को कैसे ले सकता हूँ ? इसीलिए मैं इन्हें ले आया हूँ न जाने किसी जन्म में मैंने दान करने का संकल्प किया होगा और मुकर गया होऊँगा तभी तो यह मोची का चोला मिला है अब भी यदि मुकर जाऊँ तो तो न जाने मेरी कैसी दुर्गति हो ? इसीलिए राजन्  ये रूपये मेरे नहीं हुए मेरे मन में आ गया था कि इस जूती की रकम इनके लिए होगी फिर पाँच रूपये मिलते तो भी इनके होते और एक हजार मिल रहे हैं तो भी इनके ही हैं हो सकता है मेरा मन बेईमान हो जाता इसीलिए मैंने रूपयों को नहीं छुआ और असली अधिकारी को ले आया"

राजा ने आश्चर्य चकित होकर ब्राह्मण से पूछाः "ब्राह्मण मोची से तुम्हारा परिचय कैसे हुआ ?"

ब्राह्मण ने सारी आप बीती सुनाते हुए सिद्ध पुरुष के चश्मे वाली  आप के राज्य में पशुओं के दीदार तो बहुत हुए लेकिन मनुष्यत्व का विकास इस मोची में ही नज़र आया"

राजा ने कौतूहलवश कहाः "लाओ, वह चश्मा जरा हम भी देखें"

राजा ने चश्मा लगाकर देखा तो दरबारी वगैरह में उसे भी कोई सियार दिखा तो कोई हिरण, कोई बंदर दिखा तो कोई रीछ राजा दंग रह गया कि यह तो पशुओं का दरबार भरा पड़ा है  उसे हुआ कि ये सब पशु हैं तो मैं कौन हूँ ? उस ने आईना मँगवाया एवं उसमें अपना चेहरा देखा तो शेर  उस के आश्चर्य की सीमा न रही ' ये सारे जंगल के प्राणी और मैं जंगल का राजा शेर यहाँ भी इनका राजा बना बैठा हूँ ' राजा ने कहाः "ब्राह्मणदेव योगी महाराज का यह चश्मा तो बड़ा गज़ब का है  वे योगी महाराज कहाँ होंगे ?"

ब्राह्मणः "वे तो कहीं चले गये ऐसे महापुरुष कभी-कभी ही और बड़ी कठिनाई से मिलते हैं"

श्रद्धावान ही ऐसे महापुरुषों से लाभ उठा पाते हैं, बाकी तो जो मनुष्य के चोले में पशु के समान हैं वे महापुरुष के निकट रहकर भी अपनी पशुता नहीं छोड़ पाते

ब्राह्मण ने आगे कहाः 'राजन्  अब तो बिना चश्मे के भी मनुष्यत्व को परखा जा सकता है व्यक्ति के व्यवहार को देखकर ही पता चल सकता है कि वह किस योनि से आया है एक मेहनत करे और दूसरा उस पर हक जताये तो समझ लो कि वह सर्प योनि से आया है क्योंकि बिल खोदने की मेहनत तो चूहा करता है लेकिन सर्प उस को मारकर बल पर अपना अधिकार जमा बैठता है"

अब इस चश्मे के बिना भी विवेक का चश्मा काम कर सकता है और दूसरे को देखें उसकी अपेक्षा स्वयं को ही देखें कि हम सर्पयोनि से आये हैं कि शेर की योनि से आये हैं या सचमुच में हम में मनुष्यता खिली है ? यदि पशुता बाकी है तो वह भी मनुष्यता में बदल सकती है कैसे ?

तुलसीदाज जी ने कहा हैः

बिगड़ी जनम अनेक की सुधरे अब और आजु

तुलसी होई राम को रामभजि तजि कुसमाजु

कुसंस्कारों को छोड़ दें… बस अपने कुसंस्कार आप निकालेंगे तो ही निकलेंगे अपने भीतर छिपे हुए पशुत्व को आप निकालेंगे तो ही निकलेगा यह भी तब संभव होगा जब आप अपने समय की कीमत समझेंगे मनुष्यत्व आये तो एक-एक पल को सार्थक किये बिना आप चुप नहीं बैठेंगे पशु अपना समय ऐसे ही गँवाता है पशुत्व के संस्कार पड़े रहेंगे तो आपका समय बिगड़ेगा अतः पशुत्व के संस्कारों को आप निकालिये एवं मनुष्यत्व के संस्कारों को उभारिये फिर सिद्धपुरुष का चश्मा नहीं, वरन् अपने विवेक का चश्मा ही कार्य करेगा और इस विवेक के चश्मे को पाने की युक्ति मिलती है सत्संग से

मानवता से जो पूर्ण हो, वही मनुष्य कहलाता

बिन मानवता के मानव भी, पशुतुल्य रह  जाता है।copy paste

Sunday, July 7, 2019

आपकी शक्तियाँ

आपकी शक्तियाँ अज्ञात हैं। सहज और शांत होकर अपने अन्दर छिपी हुई शक्तियों को पहचाना जा सकता है।

परम पूज्य सुधांशुजी महाराज

Thursday, April 4, 2019

अपने सर्वश्रेष्ठ

अपने सर्वश्रेष्ठ सनय को जानें और उसका उपयोग करें ।

परम पूज्य सुधांशुजी महाराज 

Monday, March 18, 2019

भय ,डर,चिंता से डरना नहीं

जो आपने अपने जीवन में सीखापुस्तकों से सीखागुरुओं से सीखा

 उसको निरन्तर दोहराओ जिससे ञान आपके काम आ सके।

भय ,डर,चिंता से डरना नहीं उससे भागो मत् ,भय का मज़ाक उड़ाना सीखो ! 

परम पूज्य सुधांशुजी महाराज    

Saturday, January 5, 2019

अभ्यास से

अभ्यास से ही आदत बनती है। अच्छाई का अभ्यास लगातार करते जाइए वह आदत बन जाएगी।

 

परम पूज्य सुधांशुजी महाराज

Wednesday, December 12, 2018

जैसे दिन को

His Holiness Sudhanshu Ji Maharaj


जैसे दिन को सजाता है सूर्य और रात को सजाता है चाँदवैसे ही मानव जीवन को सौंदर्य से युक्त करने का 
काम सदगुरु करते हैं 

परम पूज्य सुधांशुजी महाराज 

Friday, November 30, 2018

साहसी होना है

साहसी होना है, शिष्ट होना है, पर अपने आपको कोसना नहीं है।

परम पूज्य सुधांशुजी महाराज 

Saturday, November 3, 2018

।।।ॐ गुरूवे नमः।।।
परम पूज्य संत युगऋषि सदगुरू श्री सुधांशु जी महाराज श्री के चरणों में कोटि कोटि प्रणाम।।।
          संसार मे रहते हुए न माया मरी न मन ।
शरीर न जाने कितनी बार मर चुका पर मनुष्य की आशा और तृष्णा नही मरती । 
        आशा और तृष्णा (प्यास)ऐ सबको है।
लेकिन संसार की किसी भी चिज से वो पुरी होती नही। लेकिन हमारा कैसे होता है।
             " शांति खोयी है घर मे 
          और हम ढुंड रहे है हरिद्वार में"
हमारी तृष्णा और आशा प्रभु परमात्मा की हो।
और संतुष्टी / संतोष अगर मन मे नही है।आप कितना भी तीर्थयात्रा कर ले पुरी नहीं होगी। इसका मतलब ऐ नहीं की आप तीर्थ यात्रा न करे। अवश्य करो क्योंकि हर स्थान का महत्व है।
लेकिन मन मे शांति हो, संतोष हो, संतुष्टी हो। तो आप को हर वक़्त हर जगह वो मिलता है।
             माया में हम इतने लुप्त हो जाते है ।कि हम उसमें से बाहर निकल ते ही नहीं और हमें सब समझता है तो भी हम बाहर नही निकालते।
            इन सब झंझटों से जंजीरों से बाहर निकल ने के लिए आप कोई भी मार्ग अपना सकते है। जैसे भजन ,कीर्तन ,कथा ,प्रवचन,
इनमें खो जाये तो आपको अपने आप रस मिलेगा। और सच्ची खुशी और आनंद मिलेगा।
      कथा ,सत्संग ,प्रवचन ऐ अमृत और अमुल्य है। देवो को अमृत मिला समुद्र मंथन से वो भी दैत्य भगाकर ले चलें थे। बाक़ी  story आप जानते है। लेकिन यहा जो अमृत मिलता है ।वो संतों के हृदय से निकलता है। इस अमृत को प्राप्त करने के लिए भगवान परमात्मा को भी इस धरती पर आना पड़ा ।
            हमारी आशा, तृष्णा वही पूरी होतीभी है। तो सत्संग का लाभ लो ।अगर हमारा बहुत भाग्य है।तो हमारा मन वहा जाने का करता है। वहां मन लगता हैं। और आप बहुत भाग्यशाली है तो कथा प्रवचन मन मे बैठती है। और हमारी आत्मा की प्यास बुझती है।
             There is no other option
दुसरा मार्ग है ही नहीं।
             इसमे इतना आनंद है।कि मै बयान नहीं कर सकता।यहा परिणाम ऐसा होता है कि जिन्हें पढ़ना लिखना नहीं आता उनके  श्लोक के श्लोक पाठ हो जाते है। वो पढने लग जाते है।उन्हें रस आने लग जाता है। हमारा अज्ञान भ्रम मिटता है। हमारी आशा पुरी होनी लगती है।माया मोह से उपर उठकर जिना शुरु हो जाता है।
              भगवान बुद्ध भी कहते है , कि हम लोग हररोज मरते है। और आप इतनी बार मरे की आप हड्डी के उपर ही खड़े है। इतनी बार रोना हुआ कि समुद्र बहने लगा है। हर जनम में वही रोना धोना चिखना चिल्लाना रहा ।इस जन्म  का फायदा उठाकर आगें बढें। भगवान कि अनुकम्पा से ऐ मनुष्य देह मिला है। उसे पहचान ले। और जीवन सार्थक करे। ऐ है जागरण ऐ है जागृति वो लाने के लिए ही संत श्री सुधांशु जी महाराज श्री कार्यक्रम चलाए जा रहे हैं।
               हमारा जन्म क्यो हुआ? हमे क्या करना है? जीवन का मकसद क्या है? हम कहाँ है? कहा जाना है?हम कहा खडे है? इसे समझे / जाने ।और मोहमाया से उपर उठकर जिए।
              आपका दिन शुभ हो मंगल मय हो।
प्रभु परमात्मा की कृपा हमेशा बनी रहै।घर परिवार मे एक दुसरे से प्यार बढें।
     ।।।हरि ॐ सभीको।।ॐ गुरूवे नमः।।
       ।।धन्यवाद।।आभार।।

Tuesday, October 30, 2018

अपने आपको



अपने आपको संभालना सब से बडी कला हे !
पूज्य सुधांशुजी महाराज   

Sunday, October 28, 2018

शरीर की यात्रा

शरीर की यात्रा तभी ठीक रहती हैजब कर्म से जुड़े रहते है। 


परम पूज्य सुधांशुजी महाराज 

Monday, October 8, 2018

जिस दिन इंसान

जिस दिन इंसान अपनी कमजोरी को जीत लेता हैउस दिन वह बड़ा बन जाता है।

परम पूज्य सुधांशुजी महाराज 

Monday, July 16, 2018

बाहर सब लोग

बाहर सब लोग आपके लिए बदल जाएँ, ऐसा संभव नहीं है। आप ही संसार को देखने की दृष्टि थोड़ी बदल लीजिए

Sunday, June 24, 2018

प्रेम वाला

प्रेम वाला इंसान ही दुनिया में निर्माण कर सकता है।

परम पूज्य सुधांशुजी महाराज

Saturday, January 13, 2018

join my group

पढ़ना, समझना

पढ़नासमझना और फिर जीवन में उतारना ही ज्ञान का उपयोग है।

परम पूज्य सुधांशुजी महाराज 

Wednesday, January 3, 2018

आपके अन्दर

आपके अन्दर कोई दोष है तो अपने को सजा दीजिए। दूसरे का दोष देखो तो उसको क्षमा कर दीजिए। 

परम पूज्य सुधांशुजी महाराज 

Friday, December 15, 2017

आपके अन्दर

आपके अन्दर कोई दोष है तो अपने को सजा दीजिए। दूसरे का दोष देखो तो उसको क्षमा कर दीजिए। 

परम पूज्य सुधांशुजी महाराज 

Wednesday, November 22, 2017

रक्षा करो प्रेम

रक्षा करो प्रेम की और देखो ,माँ का प्रेम , पत्नी का प्रेम ,बच्चों का प्रेम ,रिशतेदारों का प्रेम, धन कमाने के चक्कर में खत्म न हो जाए !

Tuesday, November 7, 2017

मनुष्य कहे

मनुष्य  कहे खुशी तू आये,तो मैँ मुस्कुराऊँ,
खुशी कहे तू मुस्कुराये,तो मैँ आऊँ...

Saturday, October 28, 2017

आपसे कीमती

आपसे कीमती कुछ भी नहीं है। स्वंय को पहचानो, अपनी शक्ति अन्दर से जाग्रत करें ।


परम पूज्य सुधांशुजी महाराज

Wednesday, October 11, 2017

hanuman chalisa

SAGAR JAI KAPISH TUHI LOK UJAGAR" 
Shree Guru Charan Saroj Raj, Nij Man Mukar Sudhari, 
Barnau Raghuvar Bimal Jasu, Jo dayaku Phal Chari 


With the dust of Guru's Lotus feet, I clean the mirror of my mind and then 
narrate the sacred glory of Sri Ram Chandra, The Supereme among the Raghu 
dynasty. The giver of the four attainments of life. 


Budhi heen Tanu Janike, Sumirow, Pavan Kumar, 
Bal Buddhi Vidya Dehu Mohi, Harahu Kalesh Bikaar 


Knowing myself to be ignorent, I urge you, O Hanuman, The son of Pavan! O 
Lord! kindly Bestow on me strength, wisdom and knowledge, removing all my 
miseries and blemishes. 


Jai Hanuman Gyan Guna Sagar 
Jai Kipis Tihun Lok Ujgaar 


Victory of Thee, O Hanuman, Ocean of wisdom and virtue, victory to the Lord of 
monkeys who is well known in all the three worlds 


Ramdoot Atulit Bal Dhamaa, 
Anjani Putra Pavansut naamaa. 


You, the Divine messager of Ram and repository of immeasurable strength, are also 
known as Anjaniputra and known as the son of the wind - Pavanputra. 


Mahebeer Bikram Bajrangi, 
Kumati Nivaar Sumati Ke Sangi. 


Oh Hanumanji! You are valiant and brave, with a body like lightening. You are the 
dispeller of darkness of evil thoughts and companion of good sense and wisdom. 


Kanchan Baran Biraaj Subesaa, 
Kanan kundal kunchit kesa. 


Shri Hanumanji's physique is golden coloured. His dress is pretty, wearing 
'Kundals' ear-rings and his hairs are long and curly. 


Hath Bajra Aur Dhvaja Birjai, 
Kandhe Moonj Janeu saage. 


Shri Hanumanji is holding in one hand a lighting bolt and in the other a banner 
with sacred thread across his shoulder. 


Shankar Suvna Kesari Nandan, 
Tej Pratap Maha Jag Vandan. 


Oh Hanumanji! You are the emanation of 'SHIVA' and you delight Shri Keshri. 
Being ever effulgent, you and hold vast sway over the universe. The entire 
world proptiates. You are adorable of all. 


Vidyavaan Guni Ati Chatur, 
Ram Kaj Karibe Ko Atur 


Oh! Shri Hanumanji! You are the repository learning, virtuous, very wise and 
highly keen to do the work of Shri Ram, 
Prabhu Charittra Sunibe Ko Rasiya, 
Ram Lakhan Sita man basyia. 


You are intensely greedy for listening to the naration of Lord Ram's lifestory and 
revel on its enjoyment. You ever dwell in the hearts of Shri Ram-Sita and Shri Lakshman. 
Sukshma roop Dhari Siyahi Dikhwana, 
Bikat roop Dhari Lank Jarawa 


You appeared beofre Sita in a diminutive form and spoke to her, while you 
assumed an awesome form and struck terror by setting Lanka on fire. 


Bhim roop Dhari Asur Sanhare, 
Ramchandra Ke kaaj Savare. 


He, with his terrible form, killed demons in Lanka and performed all acts of Shri 
Ram. 


When Hanumanji made Lakshman alive after bringing 'Sanjivni herb' Shri Ram 
took him in his deep embrace, his heart full of joy. 


Raghupati Kinhi Bahut Badaai, 
Tum Mama Priya Bharat Sam Bahi. 


Shri Ram lustily extolled Hanumanji's excellence and remarked, "you are as dear 
to me as my own brother Bharat" 


Sahastra Badan Tumharo Jas Gaave, 
Asa kahi Shripati Kanth Laagave. 


Shri Ram embraced Hanumanji saying: 
"Let the thousand - tongued sheshnaag sing your glories" 


Sankadik Brahmadi Muneesa, 
Narad Sarad Sahit Aheesa 


Sanak and the sages, saints. Lord Brahma, the great hermits Narad and 
Goddess Saraswati along with Sheshnag the cosmic serpent, fail to sing the 
glories of Hanumanji exactly 


Jam Kuber Digpal Jahan Te, 
Kabi Kabid Kahin Sake Kahan Te 


What to talk of denizens of the earth like poets and scholars ones etc even Gods 
like Yamraj, Kuber, and Digpal fail to narrate Hanman's greatness in toto. 


Tum Upkar Sugrivahi Keenha, 
Ram Miali Rajpad Deenha 


Hanumanji! You rendered a great service for Sugriva, It were you who united 
him with SHRI RAM and installed him on the Royal Throne. 


Tumharo Mantro Bibhishan Maana, 
Lankeshwar Bhaye Sab Jag Jaana. 


By heeding your advice. Vibhushan became Lord of Lanka, which is known all 
over the universe. 


Juug Sahastra Jojan Par Bhaanu, 
Leelyo Taahi Madhur Phal Jaanu 


Hanumanji gulped, the SUN at distance of sixteen thousand miles considering 
it to be a sweet fruit. 


Prabhu Mudrika Meli Mukha Maaheen, 
Jaladhi Langhi Gaye Acharaj Naheen. 


Carrying the Lord's ring in his mouth, he went across the ocean. There is no 
wonder in that. 


Durgam Kaaj Jagat Ke Jeete, 
Sugam Anugrah Tumhre Te Te. 


Oh Hanumanji! all the difficult tasks in the world are rendered easiest by your 
grace. 
Ram Duware Tum Rakhavare, 
Hot Na Aagya Bin Paisare. 


Oh Hanumanji! You are the sentinel at the door of Ram's mercy mansion or His 
divine abode. No one may enter without your permission. 


Sab Sukh Lahen Tumhari Sarna, 
Tum Rakshak Kaahu Ko Darnaa. 


By your grace one can enjoy all happiness and one need not have any fear under 
your protection. 


Aapan Tej Samharo Aapei, 
Tanau Lok Hank Te Kanpei 


When you roar all the three worlds tremble and only you can control your might. 


Bhoot Pisaach Nikat Nahi Avei, 
Mahabir Jab Naam Sunavei. 


Great Brave on. Hanumanji's name keeps all the Ghosts, Demons & evils spirits 
away from his devotees. 


Nasei Rog Hare Sab Peera, 
Japat Niranter Hanumant Beera 


On reciting Hanumanji's holy name regularly all the maladies perish the entire 
pain disappears. 


Sankat Te Hanuman Chhudavei, 
Man Kram Bachan Dhyan Jo Lavei. 


Those who rembember Hanumanji in thought, word and deed are well guarded 
against their odds in life. 


Sub Par Ram Tapasvee Raaja, 
Tinke Kaaj Sakal Tum Saaja 


Oh Hanumanji! You are the caretaker of even Lord Rama, who has been hailed as 
the Supreme Lord and the Monarch of all those devoted in penances. 


Aur Manorath Jo Koi Lave, 
Soi Amit Jivan Phal Pave. 


Oh Hanumanji! You fulfill the desires of those who come to you and bestow 
the eternal nectar the highest fruit of life. 


Charo Juung Partap Tumhara, 
Hai Parsiddha Jagat Ujiyara. 


Oh Hanumanji! You magnificent glory is acclaimed far and wide all through the 
four ages and your fame is radianlty noted all over the cosmos. 


Sadho Sant Ke Tum Rakhvare, 
Asur Nikandan Ram Dulare. 


Oh Hanumanji! You are the saviour and the guardian angel of saints and sages 
and destroy all the Demons, you are the seraphic darling of Shri Ram. 


Ashta Siddhi Nau Nidhi Ke Data, 
Asa Bar Din Janki Mata. 


Hanumanji has been blessed with mother Janki to grant to any one any YOGIC 
power of eight Sidhis and Nava Nidhis as per choice. 


Ram Rasayan Tumhare Pasa, 
Sadaa Raho Raghupati Ke Dasa. 


Oh Hanumanji! You hold the essence of devotion to RAM, always remaining His 
Servant. 


Tumhare Bhajan Ramko Pavei. 
Janam Janam Ke Dukh Bisravei. 


Oh Hanumanji! through devotion to you, one comes to RAM and becames free 
from suffering of several lives. 


Anta Kaal Raghubar Pur Jai, 
Jahan Janma Hari Bhakta Kahai. 


After death he enters the eternal abode of Sri Ram and remains a devotee of 
him, whenever, taking new birth on earth. 


Aur Devata Chitt Na Dharai, 
Hanumant Sei Sarva Sukh Karai 


You need not hold any other demigod in mind. Hanumanji alone will give all 
happiness. 


Sankat Kate Mitey Sab Peera, 
Jo Sumirei Hanumant Balbeera 


Oh Powerful Hanumanji! You end the sufferings and remove all the pain from 
those who remember you. 


Jai Jai Jai Hanuman Gosai 
Kripa Karahu Gurudev Ki Naiee 


Hail-Hail-Hail-Lord Hanumanji! I beseech you Honour to bless me in the 
capacity of my supreme 'GURU' (teacher). 


Jo Sat Baar Paath Kar Koi, 
Chhutahi Bandi Maha Sukh Hoi. 


One who recites this Hanuman Chalisa one hundred times daily for one hundred 
days becames free from the bondage of life and death and ejoys the highest 
bliss at last. 


Jo Yah Padhe Hanuman Chalisa, 
Hoy Siddhi Sakhi Gaurisa 


As Lord Shankar witnesses, all those who recite Hanuman Chalisa regularly are 
sure to be benedicted 


Tulsidas Sada Hari Chera, 
Keeje Nath Hriday Mah Dera. 


Tulsidas always the servant of Lord prays. "Oh my Lord! You enshrine within my 
heart.! 


Chopai 


Pavan Tanay Sankat Haran , Mangal Murti Roop. 
Ram Lakhan Sita Sahit, Hriday Basahu Sur Bhoop. 


O Shri Hanuman, The Son of Pavan, Saviour The Embodiment of 
blessings, reside in my heart together with Shri Ram, Laxman and Sita