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Friday, November 30, 2018

साहसी होना है

साहसी होना है, शिष्ट होना है, पर अपने आपको कोसना नहीं है।

परम पूज्य सुधांशुजी महाराज 

Saturday, November 3, 2018

।।।ॐ गुरूवे नमः।।।
परम पूज्य संत युगऋषि सदगुरू श्री सुधांशु जी महाराज श्री के चरणों में कोटि कोटि प्रणाम।।।
          संसार मे रहते हुए न माया मरी न मन ।
शरीर न जाने कितनी बार मर चुका पर मनुष्य की आशा और तृष्णा नही मरती । 
        आशा और तृष्णा (प्यास)ऐ सबको है।
लेकिन संसार की किसी भी चिज से वो पुरी होती नही। लेकिन हमारा कैसे होता है।
             " शांति खोयी है घर मे 
          और हम ढुंड रहे है हरिद्वार में"
हमारी तृष्णा और आशा प्रभु परमात्मा की हो।
और संतुष्टी / संतोष अगर मन मे नही है।आप कितना भी तीर्थयात्रा कर ले पुरी नहीं होगी। इसका मतलब ऐ नहीं की आप तीर्थ यात्रा न करे। अवश्य करो क्योंकि हर स्थान का महत्व है।
लेकिन मन मे शांति हो, संतोष हो, संतुष्टी हो। तो आप को हर वक़्त हर जगह वो मिलता है।
             माया में हम इतने लुप्त हो जाते है ।कि हम उसमें से बाहर निकल ते ही नहीं और हमें सब समझता है तो भी हम बाहर नही निकालते।
            इन सब झंझटों से जंजीरों से बाहर निकल ने के लिए आप कोई भी मार्ग अपना सकते है। जैसे भजन ,कीर्तन ,कथा ,प्रवचन,
इनमें खो जाये तो आपको अपने आप रस मिलेगा। और सच्ची खुशी और आनंद मिलेगा।
      कथा ,सत्संग ,प्रवचन ऐ अमृत और अमुल्य है। देवो को अमृत मिला समुद्र मंथन से वो भी दैत्य भगाकर ले चलें थे। बाक़ी  story आप जानते है। लेकिन यहा जो अमृत मिलता है ।वो संतों के हृदय से निकलता है। इस अमृत को प्राप्त करने के लिए भगवान परमात्मा को भी इस धरती पर आना पड़ा ।
            हमारी आशा, तृष्णा वही पूरी होतीभी है। तो सत्संग का लाभ लो ।अगर हमारा बहुत भाग्य है।तो हमारा मन वहा जाने का करता है। वहां मन लगता हैं। और आप बहुत भाग्यशाली है तो कथा प्रवचन मन मे बैठती है। और हमारी आत्मा की प्यास बुझती है।
             There is no other option
दुसरा मार्ग है ही नहीं।
             इसमे इतना आनंद है।कि मै बयान नहीं कर सकता।यहा परिणाम ऐसा होता है कि जिन्हें पढ़ना लिखना नहीं आता उनके  श्लोक के श्लोक पाठ हो जाते है। वो पढने लग जाते है।उन्हें रस आने लग जाता है। हमारा अज्ञान भ्रम मिटता है। हमारी आशा पुरी होनी लगती है।माया मोह से उपर उठकर जिना शुरु हो जाता है।
              भगवान बुद्ध भी कहते है , कि हम लोग हररोज मरते है। और आप इतनी बार मरे की आप हड्डी के उपर ही खड़े है। इतनी बार रोना हुआ कि समुद्र बहने लगा है। हर जनम में वही रोना धोना चिखना चिल्लाना रहा ।इस जन्म  का फायदा उठाकर आगें बढें। भगवान कि अनुकम्पा से ऐ मनुष्य देह मिला है। उसे पहचान ले। और जीवन सार्थक करे। ऐ है जागरण ऐ है जागृति वो लाने के लिए ही संत श्री सुधांशु जी महाराज श्री कार्यक्रम चलाए जा रहे हैं।
               हमारा जन्म क्यो हुआ? हमे क्या करना है? जीवन का मकसद क्या है? हम कहाँ है? कहा जाना है?हम कहा खडे है? इसे समझे / जाने ।और मोहमाया से उपर उठकर जिए।
              आपका दिन शुभ हो मंगल मय हो।
प्रभु परमात्मा की कृपा हमेशा बनी रहै।घर परिवार मे एक दुसरे से प्यार बढें।
     ।।।हरि ॐ सभीको।।ॐ गुरूवे नमः।।
       ।।धन्यवाद।।आभार।।