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Wednesday, November 18, 2020
Tuesday, November 17, 2020
Sunday, November 15, 2020
Sunday, October 4, 2020
Thursday, August 27, 2020
Photo from Madan Gopal Garga
🙏आज गीता के अमृत ज्ञान में सदगुरु ने 💐ध्यान के लिए स्थान और आसन का चयन पर अपने विचार व्यक्त किए।
💐भगवान श्री कृष्ण कहते हैं। कि ध्यान के लिए आसन के रूप में, सबसे पहले जमीन पर ,लकड़ी का पाटा ,जो ना तो ज्यादा ऊंचा हो ,और ना तो जमीन के बिल्कुल समीप हो । उसके ऊपर कुश, मृगचर्म, और वस्त्र रखें। इसके साथ ही स्थान पवित्र का चयन करें। मतलब पंचमहाभूत जहां मदद कर सकें। ऐसे रमणीय प्राकृतिक स्थान का चयन करना चाहिए। भगवान श्रीकृष्ण ने स्वयं हिमालय के बद्रीनाथ नामक स्थान में त प किया ।
💐हमें जीवन में अंत: परीक्षण अवश्य करना चाहिए। मनुष्य को स्वयं चार्ज करना चाहिए। यह तभी होता है जब आप शांत होकर शयन करते हैं ।तो आप ब्रह्मांड की ऊर्जा से अपने को चार्ज करते हैं जिससे प्रातः काल में हम ताजगी अनुभव करते है। इसमें नींद का प्रमुख योगदान है
💐मनुष्य को ब्रह्मांड की ऊर्जा 10% तक मिलती है। सोने के समय करीब 5 घंटे तक आप गहरी नींद में सोते हैं उसके बाद स्वप्न अवस्था होती है। और करीब ऐसी स्थिति में आप 42 बार शरीर को हिलाते ,तथा वापस पुनः नींद में जाना चाहते हैं इन सब के लिए आपको सम वातावरण वाले स्थान में सोना चाहिए। साधना के लिए गुरु नानक देव जी हिमालय के हेमकुंड साहिब में गए।सद्गुरु ने भी अपनी बद्रीनाथ यात्रा का वर्णन किया।
💐जीवन में जब आप ऊपर उठना चाहते हैं ।तो आपकी जड़े भी उतनी ही नीचे गहरी होनी चाहिए। परमात्मा तब आपको चुनता है अपने कार्य को करने के लिए। उस समय पूरी प्रकृति आपको सहयोग देते हुए आप से बड़ा कार्य कराना चाहती है। इसका सबसे बड़ा उदाहरण ,भगवान श्रीराम का समुद्र पर सेतु बनाना है इसी तरह आप अपनी प्रतिभा से 1000 गुना बड़ा कार्य कर लेते हैं क्योंकि वह कार्य परमात्मा द्वारा किया जाता है।
💐आप शांत अवस्था में उचित स्थान पर बैठकर परमात्मा से जब जुड़ते हैं। तो वह स्थान भी पूजनीय हो जाता है। क्योंकि वहां परमात्मा का प्रकाश उतरा हुआ रहता है। आप जिस आसन पर बैठे हो, वह आसन कुचालक होना चाहिए। तथा अपनी ध्यान मुद्रा में जब आप स्थिर होते हैं तो ऊर्जा ,विद्युत धारा के रूप में आपके अंदर प्रवाहित होने लगती है।
💐आपका आसन सिंथेटिक नहीं होना चाहिए ।वह उन, सूती, रेशमी होना चाहिए होना चाहिए। जिससे आप में एलर्जी ना पैदा हो सके ।ध्यान की क्रिया में आने वाली वस्तु मैं स्थान, आसन, और जल का पात्र भी होना चाहिए। ध्यान से वापस आने पर आसन को उठाकर जलबूंद डालते हुए तीन बार भूमि को स्पर्श करना चाहिए। और शक्राय नमः, ओम इंद्राय नमः, ॐ शत क्रत्वे नमः कहते हुए फिर दोनों हाथ जोड़ सिर झुका कर प्रणाम करें।
💐 ऐसी स्थिति में जो अतिरिक्त ऊर्जा आप में है वह जमीन में चली जाएगी। ध्यान में जाने वाले व्यक्ति को अचानक आसन से उठना नहीं चाहिए ,अन्यथा आप अपने को अशांत महसूस करेंगे। अंत में दोनों हाथों का घर्षण करते हुए सिर, कंठ, कंधा ,छाती पर रखते हुए नीचे की तरफ जाना चाहिए। और यह भावना रखें कि आंखों में शांति, वाणी में संयम, कंधों में कर्म करने की क्षमता, तथा सहृदय होते हुए जीवन जीने का आशीर्वाद प्राप्त करना चाहिए।
💐ऊपर कहे गए शब्दों का सार नीचे इन चार लाइनों में।
💐वह योग अभ्यासी पुरुष, अति शुद्ध सम थल पर सदा।
💐ऊंचा ना हो नीचा अधिक, आसन लगा थि र सर्वदा।
💐तब दर्भ पहिले पुनः मृग, छाला बिछा उस स्थान पर।
💐उस पर बिछ।वे फिर धनंजय शुद्ध बस्त्र पुनीत कर।
🕉🕉🕉🕉🕉🕉🕉
क्रमशः 27 अगस्त 2020
संकलनकर्ता रविंद्र नाथ द्विवेदी पुणे मंडल🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏
💐भगवान श्री कृष्ण कहते हैं। कि ध्यान के लिए आसन के रूप में, सबसे पहले जमीन पर ,लकड़ी का पाटा ,जो ना तो ज्यादा ऊंचा हो ,और ना तो जमीन के बिल्कुल समीप हो । उसके ऊपर कुश, मृगचर्म, और वस्त्र रखें। इसके साथ ही स्थान पवित्र का चयन करें। मतलब पंचमहाभूत जहां मदद कर सकें। ऐसे रमणीय प्राकृतिक स्थान का चयन करना चाहिए। भगवान श्रीकृष्ण ने स्वयं हिमालय के बद्रीनाथ नामक स्थान में त प किया ।
💐हमें जीवन में अंत: परीक्षण अवश्य करना चाहिए। मनुष्य को स्वयं चार्ज करना चाहिए। यह तभी होता है जब आप शांत होकर शयन करते हैं ।तो आप ब्रह्मांड की ऊर्जा से अपने को चार्ज करते हैं जिससे प्रातः काल में हम ताजगी अनुभव करते है। इसमें नींद का प्रमुख योगदान है
💐मनुष्य को ब्रह्मांड की ऊर्जा 10% तक मिलती है। सोने के समय करीब 5 घंटे तक आप गहरी नींद में सोते हैं उसके बाद स्वप्न अवस्था होती है। और करीब ऐसी स्थिति में आप 42 बार शरीर को हिलाते ,तथा वापस पुनः नींद में जाना चाहते हैं इन सब के लिए आपको सम वातावरण वाले स्थान में सोना चाहिए। साधना के लिए गुरु नानक देव जी हिमालय के हेमकुंड साहिब में गए।सद्गुरु ने भी अपनी बद्रीनाथ यात्रा का वर्णन किया।
💐जीवन में जब आप ऊपर उठना चाहते हैं ।तो आपकी जड़े भी उतनी ही नीचे गहरी होनी चाहिए। परमात्मा तब आपको चुनता है अपने कार्य को करने के लिए। उस समय पूरी प्रकृति आपको सहयोग देते हुए आप से बड़ा कार्य कराना चाहती है। इसका सबसे बड़ा उदाहरण ,भगवान श्रीराम का समुद्र पर सेतु बनाना है इसी तरह आप अपनी प्रतिभा से 1000 गुना बड़ा कार्य कर लेते हैं क्योंकि वह कार्य परमात्मा द्वारा किया जाता है।
💐आप शांत अवस्था में उचित स्थान पर बैठकर परमात्मा से जब जुड़ते हैं। तो वह स्थान भी पूजनीय हो जाता है। क्योंकि वहां परमात्मा का प्रकाश उतरा हुआ रहता है। आप जिस आसन पर बैठे हो, वह आसन कुचालक होना चाहिए। तथा अपनी ध्यान मुद्रा में जब आप स्थिर होते हैं तो ऊर्जा ,विद्युत धारा के रूप में आपके अंदर प्रवाहित होने लगती है।
💐आपका आसन सिंथेटिक नहीं होना चाहिए ।वह उन, सूती, रेशमी होना चाहिए होना चाहिए। जिससे आप में एलर्जी ना पैदा हो सके ।ध्यान की क्रिया में आने वाली वस्तु मैं स्थान, आसन, और जल का पात्र भी होना चाहिए। ध्यान से वापस आने पर आसन को उठाकर जलबूंद डालते हुए तीन बार भूमि को स्पर्श करना चाहिए। और शक्राय नमः, ओम इंद्राय नमः, ॐ शत क्रत्वे नमः कहते हुए फिर दोनों हाथ जोड़ सिर झुका कर प्रणाम करें।
💐 ऐसी स्थिति में जो अतिरिक्त ऊर्जा आप में है वह जमीन में चली जाएगी। ध्यान में जाने वाले व्यक्ति को अचानक आसन से उठना नहीं चाहिए ,अन्यथा आप अपने को अशांत महसूस करेंगे। अंत में दोनों हाथों का घर्षण करते हुए सिर, कंठ, कंधा ,छाती पर रखते हुए नीचे की तरफ जाना चाहिए। और यह भावना रखें कि आंखों में शांति, वाणी में संयम, कंधों में कर्म करने की क्षमता, तथा सहृदय होते हुए जीवन जीने का आशीर्वाद प्राप्त करना चाहिए।
💐ऊपर कहे गए शब्दों का सार नीचे इन चार लाइनों में।
💐वह योग अभ्यासी पुरुष, अति शुद्ध सम थल पर सदा।
💐ऊंचा ना हो नीचा अधिक, आसन लगा थि र सर्वदा।
💐तब दर्भ पहिले पुनः मृग, छाला बिछा उस स्थान पर।
💐उस पर बिछ।वे फिर धनंजय शुद्ध बस्त्र पुनीत कर।
🕉🕉🕉🕉🕉🕉🕉
क्रमशः 27 अगस्त 2020
संकलनकर्ता रविंद्र नाथ द्विवेदी पुणे मंडल🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏
Tuesday, August 25, 2020
Wednesday, August 19, 2020
आप कुछ नियम
परम पूज्य सुधांशुजी महाराज
आप कुछ नियम बनाएँ। उन नियमों में एक नियम यह भी कि किसी को फ़ूल न दे सकें मुस्कान तो हम जरूर देगें। किसी से बात करें तो बात की शुरुआत में मुस्कान पहले होनी चाहिए। हर बच्चे की सजावट उसकी मुस्कराहट है और इस दुनियाँ में हर फ़ूल की सजावट उसकी मुस्कराहट है। आपकी भी सजावट आपकी मुस्कराहट है तो अपनी मुस्कराहट को सजाइए। मुस्कराहट को लेकर घर से निकलिए, मुस्कराहट को लेकर घर में प्रवेश कीजिए। और देवताओं की आराधना करें तो मुस्करा कर करें और अपने गुरू को प्रणाम करें तो मुस्कान के साथ करें। अपने कर्मक्षेत्र में प्रवेश करें तो मुस्कराहट के साथ करें और जब अपने अन्न को देखें तो अन्न को भी मुस्कराकर देखिए। अपने घर भी जैसे पहली द्दर्ष्टि प्रवेश करते हुए डालते है तो मुस्कराहट की द्दर्ष्टि डालिए तो आप समझेंगे कि मनहूसियत निकलेगी और देवताओं की कृपा आपके घर में प्रवेश करेगी।
Tuesday, June 16, 2020
Photo from Madan Gopal Garga
*गुरु के माध्यम से ही हम तक शास्त्रों, वेदों का सार पहुंचता है : अपनी सरल, मधुर वाणी द्वारा वह हमें ज्ञान प्रदान करते हैं जो सुपाच्य होकर हमारे अंदर उतर सके ! ॐ श्रीगुरुवे नमः !हरि ॐ !*💐🙏🕉️🙏
🙏🚩ॐ श्री गुरवे नमः🚩🙏
अभी आप एक तरफ (जगत्) से ही जुड़े हैं, आपको परमात्मा का कुछ पता ही नहीं है। अनादि काल से आप देह मानकर जीते हैं, देह से जुड़े हैं , सो जाते हैं फिर जागकर देह से ही जुड़ जाते हैं। आप स्वप्न भी देह का ही देखते हैं, साक्षी या ब्रह्म का स्वप्न भी नहीं देखते। आप जागृत में भी कभी नहीं सोचते। आपको साक्षी होना है। साक्षी को साक्षी नहीं होना। साक्षी तो पहले से रहा है , परमात्मा तो पहले से रहा है । क्या जिस दिन आप ढूढ़ेंगे, तब परमात्मा होगा ? जिस दिन आप मिलेंगे, उस दिन परमात्मा होगा? क्या उसके पहले नहीं था ?
यदि घड़ा मिट्टी को न जाने तो क्या मिट्टी नहीं है ? अब प्रश्न यह है कि घड़ा क्यों जाने ? घड़ा मर रहा है , तो जाने। मिट्टी न मर रही है , न उसे कोई मतलब है। जो भूला है, वह याद करे । जो अज्ञानी है , वह ज्ञान प्राप्त करे । जो दुःखी है , वह खोजे । भगवान क्यों खोजे ? भगवान को क्या अटकी पड़ी है ? देह क्यों रोए? पेड़ नहीं रोता, दीवार नहीं रोती, मकान नहीं रोता। क्या आपका देह रोता है आपके लिए ? कौन रोता है धन के लिए ? जो धन के लिए रोता है, उसका रोना मिट जाए, इसके लिए परम धन से मिलना होगा।
प्रयत्न न परमात्मा में है, न संसार में। न संसार को कुछ करना है ,न परमात्मा को कुछ करना है। जो कुछ करना है , (जीव को) आपको करना है। थोड़ा - सा काम आपका है ,आप करें और थोड़ा - सा काम गुरु करवाते हैं । परमात्मा कुछ नहीं करने वाले।
अब आप कुछ करें या ऐसे ही बने रहें। अरे ! आप इस शरीर को कहें कि कुछ करे। यदि नहीं तो जड़- जगत् उपदेश का पात्र नहीं। न ब्रह्म को साधना करनी है और न शरीर को साधना करनी है ।यदि शरीर में रहने वाला जीव चाहे तो साधना करे ।
*जीव और ब्रह्म का नित्य संबंध:-*
🙏🚩ॐ श्री गुरवे नमः🚩🙏
*( गुरुवाणी पुस्तक-देहोऽहम् से चैतन्योऽहम् तक यात्रा* भाग 6
Thursday, March 12, 2020
Friday, March 6, 2020
*🚩ॐ गुरूवे: नमः!🚩*
🌹 *आत्मप्रार्थना!*🌹
*🚩ॐ द्रां द्रीं द्रों स शुक्राय: नमः!🚩*
*🕉ॐ जय लक्ष्मी-नारायण सहित सद्गुरुदेवाय: चरण कमलेभ्यो: नमः!🕉*
*हे लक्ष्मी-पति!हे नारायण!हे सच्चिदानंदस्वरूप प्यारे प्रभु!हम सभी आपके श्रीचरणों में कोटिश: नमन करते है!हे दयाओं के अनन्त सागर!आप पल-प्रतिपल हम सब प्राणियों पर कृपा-वृष्टि कर रहे है!आप प्रेमपूर्ण होकर ही सृष्टि का निर्माण करते है और सृष्टि का संहार भी आपके प्रेमपूर्ण हाथो से ही होता है!*
*प्राणिमात्र के प्रति प्रेम से ओत-प्रोत होकर आप सृष्टि के नियमों की रचना करते है!जो प्राणी आपके नियमों के अनुकूल आचरण करता है उसकी झोली सुख और आनन्द से सदा भरी रहती है!*
*हे जगदीश्वर!हम आपके कल्याणमय तेज स्वरुप का ध्यान धरते है और याचना करते है कि हमें ऐसी मानसिक सामर्थ्य प्रदान करें कि हम हमेशा आपके ही नियमों पर चलते रहें!आलस्य व् प्रमाद हम पर कभी हावी न हो!*
*हे मेरे प्यारे प्रभु!हमें दुःखो से,कष्टों से मुक्त करें किन्तु अपने प्रेम बंधन से कभी अलग न होने दे!अब वैराग्य जागृत कर दीजिये!हमें ऐसा ज्ञान और विवेक प्राप्त हो जिससे हम अपने कर्तव्यों को तो निभायें लेकिन मोह-ममता हमारे मन में जागृत न हो!*
*हे नारायण!अपनों के प्यार में पड़कर हम कोई गुनाह न करें!भले ही अपने संबंधियों को ज्यादा धन-सम्पदा सुख-सुविधाएँ न दे सके,पर अच्छे संस्कार और मर्यादा जरूर देकर जायें!*
*हे भगवन!ये दुनिया हमसे छूट जाये पर आपका धाम हमें प्राप्त हो जाये!यही हमारी आपके श्रीचरणों में प्रार्थना है,इसे स्वीकार करें!हे नारायण!आपके सभी बच्चें सदा सुखी,स्वस्थ,दीर्घायु,सम्पन्न,सफल व खुशहाल रहें!सभी का हर दिन शुभ,मंगलमय,सुखमय,भक्तिमय व कल्याणकारी हो!सादर हरि ॐ जी!जय गुरुदेव!जय श्रीराम!🚩🌹🕉🙏🏻*
Sunday, March 1, 2020
Saturday, February 29, 2020
Monday, January 6, 2020
Friday, January 3, 2020
जीवन संगीत है।
परम पूज्य सुधांशुजी महाराज
जीवन संगीत है। सुर से बजाओगे तो बहुत अच्छा है, मधुर है और अगर सुर से भूल गए तो शोर है जीवनऔर उसको खुद भी नहीं सुन पाओगे दूसरे तो क्या सुनेगें ।
जीवन है चुनौती । नित नई नई चुनौती बनकर सामने आती हैं । जब आप बहादुर होकर चुनौती को स्वीकार करते हैं
तो वो कुछ न कुछ देकर ही जाएँगी, कुछ लाभ देंगी ।
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